वहीं, नाम न बताने की शर्त पर एक पत्रकार कहते हैं, "पवार परिवार में
आपसी रिश्ते बेहद मज़बूत हैं. शरद पवार की बात कोई नहीं टालता है. ऐसे में
शरद पवार ने मावल में जीत सुनिश्चित होने की वजह से ही उन्हें उम्मीदवारी
दी है. इसके पीछे एक वजह ये थी कि अगर एक ही परिवार के ज़्यादा लोग चुनाव
लड़ें तो जनता में इससे ग़लत संदेश जाता है.''
इसी वजह से पवार ने
ख़ुद चुनाव न लड़ने का फ़ैसला किया है. पवार का मानना है कि चुनाव जीतने की क्षमता और जनाधार के आधार पर टिकटों का बँटवारा किया जाता है. ऐसा होने के
बावजूद भी दिल्ली की राजनीति में पवार परिवार की सुप्रिया सुले, पार्थ पवार और शरद पवार (राज्य सभा से) तीन सदस्यों की मौजूदगी होगी. वहीं,
महाराष्ट्र की विधानसभा में अजित पवार और रोहित पवार मौजूद होंगे.
शरद पवार के भाई अप्पा साहेब पवार के बेटे का नाम राजेंद्र पवार था.
राजेंद्र भी राजनीति में आना चाहते थे लेकिन परिवार के एक सदस्य अजित पवार पहले ही राजनीति में आ चुके थे.
ऐसे में उनका ये सपना अधूरा रह गया.
इसके बावजूद राजेंद्र पवार ने बारामती एग्रो और शिक्षण संस्थाएं चलाकर समाज में अपना नाम हासिल किया.
अब राजेंद्र के 31 साल के बेटे रोहित को राजनीति में दिलचस्पी है. हाल ही में वह पुणे ज़िला परिषद के सदस्य बने हैं.
स्थानीय
पत्रकार मानते हैं कि रोहित विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह हडपसर या कर्जत-जामखेडची में से किसी एक विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं.
एक सवाल ये है कि क्या पार्थ पवार मावल लोकसभा सीट से सिर्फ़ पवार उपनाम की वजह से चुनाव जीत जाएंगे.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पार्थ की उम्मीदवारी से राष्ट्रवादी कांग्रेस को लाभ ज़रूर होगा.
लेकिन पार्थ से पहले कई दिग्गज राजनेता इस सीट से चुनाव हार चुके हैं.
यहां के रायगड क्षेत्र में शेतकरी कामगार पक्ष का प्रभाव है.
इस बार ये पक्ष चाहता है कि पार्थ पवार को टिकट मिले और अगर ऐसा हुआ तो ये पक्ष एनसीपी को अपना समर्थन देगा.
लेकिन
अगर ये हुआ तब भी ये एक कठिन चुनाव साबित होगा. इससे पहले उम्मीदवार
एकतरफ़ा जीत हासिल कर लेते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा.
मावल के
वर्तमान सांसद श्रीरंग बारणे का जनाधार काफ़ी अच्छा है. इसलिए पार्थ पवार
को उम्मीदवारी मिलने के बाद भी बारणे की हार की आशंका जताना ग़लत होगा.
वहीं,
विजय चोरमारे का कहना है, "पार्थ पवार घराने से आते हैं. इसी वजह से इस
चुनाव में दलबदल की संभावना कम होगी. इस लोकसभा सीट का माहौल देखें तो पार्थ पवार की उम्मीदवारी एनसीपी के लिए लाभदायक होगी. लेकिन यहां शिव सेना
का नेटवर्क भी काफ़ी अच्छा है. इसीलिए अजीत पवार को अपने बेटे के लिए
व्यक्तिगत स्तर पर मेहनत करनी होगी."
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